ज्यादा स्क्रीन टाइम से मेलाटोनिन घटने पर नींद क्यों प्रभावित होती है? जाने कारण!

क्या ज्यादा स्क्रीन टाइम आपकी नींद को खराब कर सकता है? जानिए मेलाटोनिन पर इसके प्रभाव, नींद पर असर और हेल्दी स्क्रीन टाइम आदतों को अपनाने के आसान उपाय!

आज के डिजिटल युग में मोबाइल, लैपटॉप, और टीवी जैसी स्क्रीन का उपयोग हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अधिक स्क्रीन टाइम आपके शरीर के नेचुरल नींद चक्र (सर्केडियन रिदम) को बिगाड़ सकता है? यह मुख्यतः मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को प्रभावित करता है, जो हमारे शरीर को सोने का संकेत देता है। यह लेख बताएगा कि स्क्रीन टाइम और मेलाटोनिन के बीच क्या संबंध है, अधिक स्क्रीन टाइम नींद के लिए कैसे नुकसानदायक हो सकता है, और इसे कम करने के लिए आप क्या कर सकते हैं।

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मेलाटोनिन और नींद का संबंध

मेलाटोनिन एक हार्मोन है, जो दिमाग के पीनियल ग्रंथि (pineal gland) द्वारा उत्पादित होता है। यह शरीर को दिन और रात के अनुसार नींद और जागने के संकेत देने का काम करता है।

मेलाटोनिन की भूमिका:

  1. नींद का समय तय करना:
    रात में अंधेरा होने पर मेलाटोनिन का स्तर बढ़ता है, जो शरीर को सोने का संकेत देता है।
  2. सर्केडियन रिदम बनाए रखना:
    यह हार्मोन हमारे शरीर की आंतरिक घड़ी को संतुलित रखता है।

स्क्रीन टाइम मेलाटोनिन को कैसे दबाता है?

डिजिटल स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन उत्पादन को बाधित कर सकती है।

ब्लू लाइट का प्रभाव:

  • मेलाटोनिन उत्पादन में कमी:
    ब्लू लाइट के संपर्क में आने से दिमाग को यह संकेत मिलता है कि यह दिन का समय है, जिससे मेलाटोनिन कम बनता है।
  • नींद चक्र में देरी:
    मेलाटोनिन का स्तर कम होने से सोने और जागने का समय अनियमित हो सकता है।

लंबे स्क्रीन टाइम के अन्य प्रभाव:

  1. नींद की गुणवत्ता खराब होना:
    देर रात तक स्क्रीन का उपयोग करने से गहरी नींद लेने में कठिनाई होती है।
  2. थकान और चिड़चिड़ापन:
    पर्याप्त नींद न मिलने से दिनभर थकान और मूड खराब रह सकता है।

भारतीय संदर्भ में स्क्रीन टाइम का बढ़ता चलन

भारत में स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

आंकड़े:

  • एक औसत भारतीय व्यक्ति दिन में लगभग 5-6 घंटे स्क्रीन के सामने बिताता है।
  • शहरी क्षेत्रों में, यह समय बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए अधिक हो सकता है।

भारतीय जीवनशैली पर प्रभाव:

  1. बच्चों की पढ़ाई पर असर:
    ऑनलाइन क्लास और गेमिंग के कारण बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी बढ़ गया है।
  2. कार्य जीवन और स्क्रीन:
    वर्क फ्रॉम होम के बढ़ते चलन से वयस्कों का स्क्रीन टाइम भी अधिक हो गया है।

स्क्रीन टाइम कम करने के उपाय

1. सोने से पहले स्क्रीन का उपयोग बंद करें:

  • सोने से कम से कम 1 घंटे पहले डिजिटल उपकरणों का उपयोग बंद करें।
  • किताब पढ़ने या ध्यान लगाने जैसी आदतें अपनाएं।

2. ब्लू लाइट फिल्टर का उपयोग करें:

  • स्मार्टफोन और लैपटॉप में ब्लू लाइट फिल्टर का इस्तेमाल करें।
  • “नाइट मोड” ऑन करें, जिससे ब्लू लाइट का प्रभाव कम हो।

3. स्क्रीन टाइम सीमित करें:

  • हर 20 मिनट पर स्क्रीन से नज़र हटाकर 20 सेकंड तक किसी दूर की वस्तु को देखें।
  • स्क्रीन समय को कार्य और मनोरंजन के अनुसार बांटें।

4. शारीरिक गतिविधि बढ़ाएं:

  • नियमित व्यायाम और योग करें।
  • सोने से पहले हल्के स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें।

5. स्लीप हाइजीन बनाए रखें:

  • सोने और जागने का एक निश्चित समय तय करें।
  • सोने का माहौल शांत और अंधेरा रखें।

स्क्रीन टाइम और बच्चों पर प्रभाव

बच्चों के विकास पर स्क्रीन टाइम का नकारात्मक प्रभाव:

  1. शारीरिक गतिविधि में कमी:
    अधिक स्क्रीन टाइम के कारण बच्चे खेलकूद में कम रुचि दिखाते हैं।
  2. मानसिक विकास पर असर:
    बच्चों में ध्यान केंद्रित करने और सीखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

माता-पिता के लिए सुझाव:

  • बच्चों के स्क्रीन टाइम पर निगरानी रखें।
  • परिवार के साथ स्क्रीन-फ्री समय बिताएं।
  • बच्चों को आउटडोर एक्टिविटीज के लिए प्रेरित करें।

विशेषज्ञों की सलाह

1. डॉक्टरों की राय:

  • डॉक्टर सलाह देते हैं कि 8 घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
  • नींद की समस्या के लिए मेलाटोनिन सप्लीमेंट्स की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन इन्हें डॉक्टर की सलाह पर ही लें।

2. नींद विशेषज्ञ की टिप्स:

  • सोने से पहले डिजिटल डिटॉक्स अपनाएं।
  • स्क्रीन के सामने सही पॉश्चर बनाए रखें।

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निष्कर्ष

अधिक स्क्रीन टाइम मेलाटोनिन उत्पादन को बाधित कर सकता है, जिससे नींद की समस्याएं बढ़ सकती हैं। भारत में डिजिटल उपकरणों का बढ़ता उपयोग इस समस्या को और गंभीर बना रहा है। स्क्रीन टाइम को सीमित करके, ब्लू लाइट से बचाव करके, और स्लीप हाइजीन अपनाकर आप इस समस्या से बच सकते हैं। अपनी नींद और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए डिजिटल डिवाइस का उपयोग जिम्मेदारी से करें। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से सलाह लें।

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