हाइपोग्लाइसीमिया (निम्न रक्त शर्करा): लक्षण, निदान और उपचार

हाइपोग्लाइसीमिया : लक्षण, निदान और उपचार। कम रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित और रोकने के लिए आवश्यक टिप्स।

low blood sugar tester

Hypoglycemia एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में शुगर का स्तर बहुत कम हो जाता है, जब यह 70 mg/dL से नीचे आ जाता है। यह आमतौर पर डायबिटीज़ के साथ जुड़ा होता है, लेकिन यह बिना डायबिटीज़ वाले लोगों में भी हो सकता है, खासकर जब शरीर में कुछ गड़बड़ी होती हैं। हाइपोग्लाइसीमिया को हल्का, मध्यम या गंभीर माना जा सकता है, जो शुगर की कमी और शरीर की प्रतिक्रिया के आधार पर होता है। मस्तिष्क के लिए शुगर बहुत ज़रूरी है, इसलिए इसे सही समय पर ठीक करना ज़रूरी है। अगर हाइपोग्लाइसीमिया का इलाज न किया जाए, तो यह गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है, जैसे दिमागी गड़बड़ियां और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है।

2. कारण

हाइपोग्लाइसीमिया के कई कारण हो सकते हैं, और इसका सही इलाज करने के लिए इसके असली कारण को समझना बहुत ज़रूरी है।

  • डायबिटीज़ से जुड़े कारण: डायबिटीज़ के मरीज़ों में हाइपोग्लाइसीमिया अक्सर ज़्यादा इलाज से होता है। अगर इंसुलिन की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा ली जाए, चाहे वह इंजेक्शन से हो या इंसुलिन पंप से, तो शुगर का स्तर बहुत कम हो सकता है। इसी तरह, कुछ दवाएं, खासकर सल्फोनिल्यूरा (sulfonylureas) , शुगर को खतरनाक स्तर तक गिरा सकती हैं। खाना छोड़ना या बिना पर्याप्त कार्बोहाइड्रेट लिए ज्यादा मेहनत वाला काम करना भी जोखिम बढ़ा सकता है। इंसुलिन, भोजन और शारीरिक गतिविधि के बीच सही संतुलन बनाए रखना हाइपोग्लाइसीमिया से बचने के लिए बहुत जरूरी है।
  • गैर-डायबिटिक कारण: जिन लोगों को डायबिटीज़ नहीं है, उनमें भी हाइपोग्लाइसीमिया अलग-अलग कारणों से हो सकता है। खाली पेट पर ज़्यादा शराब पीने से शरीर में ग्लूकोज़ बनने की प्रक्रिया रुक जाती है, जिससे शुगर का स्तर गिर जाता है। कुछ दवाएं, जैसे बीटा-ब्लॉकर्स (beta-blockers) और क्विनाइन (quinine) , शुगर के लक्षणों को छुपा सकती हैं या शुगर को सीधे कम कर सकती हैं। कुछ हार्मोन की कमी, जैसे एड्रिनल ग्रंथि की विफलता या हाइपोपीट्यूटेरिज्म, भी शरीर में शुगर का संतुलन बिगाड़ सकती है। बहुत ही कम मामलों में, पैंक्रियाज में बनने वाले ट्यूमर, जिन्हें इंसुलिनोमा कहा जाता है,खून में शुगर के स्तर से स्वतंत्र रूप से ज़्यादा इंसुलिन बनाते हैं, जिससे लगातार हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है।

3. लक्षण

हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण कई तरह के हो सकते हैं, जो उसकी गंभीरता पर निर्भर करते हैं। इसे शुरुआत में ही पहचानना ज़रूरी है ताकि समस्या बढ़ने से रोकी जा सके।

  • हल्के से मध्यम लक्षण: शुरू में, हाइपोग्लाइसीमिया से शरीर में एडल्रीन जैसे हार्मोन बढ़ जाते हैं, जिससे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। हाथ-पैर कांपना, पसीना आना, और बेचैनी या चिंता होना आम लक्षण हैं। चक्कर आना, हल्की बेहोशी, और भूख लगना तब होता है जब मस्तिष्क को अपनी ऊर्जा में कमी महसूस होती है। चिड़चिड़ापन, मूड में बदलाव, और अनियमित दिल की धड़कन शरीर के शुगर बैलेंस को सही करने की कोशिश को दिखाते हैं।आंखों का धुंधलापन भी हो सकता है जब मस्तिष्क कम ऊर्जा से फोकस बनाए रखने में कठिनाई महसूस करता है।
  • गंभीर लक्षण: अगर इलाज नहीं किया जाए, तो हाइपोग्लाइसीमिया तेजी से बिगड़ सकता है। सोचने की क्षमता खराब हो जाती है, जिससे भ्रम, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, और असामान्य व्यवहार हो सकता है। मस्तिष्क की गतिविधि असामान्य हो जाने पर दौरे भी पड़ सकते हैं। बहुत ही गंभीर मामलों में, व्यक्ति बेहोश हो सकता है या कोमा में जा सकता है, और इससे बचने के लिए तुरंत चिकित्सा की जरूरत होती है, वरना स्थायी नुकसान या मौत हो सकती है।

4.डायग्नोसिस 

हाइपोग्लाइसीमिया की सही पहचान के लिए लक्षणों, लैब टेस्ट, और मरीज के मेडिकल इतिहास को मिलाकर देखा जाता है।

  • मेडिकल इतिहास और लक्षण: पहले यह देखना जरूरी है कि लक्षण कब और कैसे होते हैं। यह जानना कि लक्षण कितनी बार और किस स्थिति में—जैसे उपवास, खाने के बाद, या शारीरिक गतिविधि के दौरान—उभरते हैं, संभावित कारणों को पहचानने में मदद करता है। यह जानकारी हाइपोग्लाइसीमिया को अन्य समान लक्षण वाली बीमारियों से अलग करने में महत्वपूर्ण होती है।
  • ब्लड शुगर टेस्ट: लक्षणों के दौरान शुगर लेवल की जांच करना जरूरी है। अगर शुगर का स्तर 70 mg/dL से नीचे हो, तो यह हाइपोग्लाइसीमिया की पुष्टि करता है। हालांकि, इन लेवल को लक्षणों के साथ मिलाना सही निदान के लिए जरूरी है।
  • फास्टिंग टेस्ट: अगर स्वाभाविक हाइपोग्लाइसीमिया का शक हो, तो एक निगरानी वाली फास्टिंग टेस्ट की जा सकती है। लंबे समय तक उपवास के दौरान ब्लड शुगर और हार्मोन लेवल की निगरानी से छिपी हुई बीमारियों जैसे इंसुलिनोमा या हार्मोनल असंतुलन का पता लगाया जा सकता है।
  • मिक्स्ड-मील टेस्ट: जिन लोगों को खाने के बाद शुगर लेवल अचानक गिरता है, उनके लिए मिक्स्ड-मील टेस्ट किया जा सकता है। इस टेस्ट में, भोजन के बाद शुगर लेवल को देखा जाता है, जो सामान्य आहार के समान होता है, ताकि असामान्य शुगर उतार-चढ़ाव की पहचान की जा सके।

5. उपचार

हाइपोग्लाइसीमिया का इलाज तुरंत और लंबे समय के लिए दोनों तरह से किया जाता है, जो व्यक्ति की जरूरतों के हिसाब से होता है।

  • हल्के से मध्यम हाइपोग्लाइसीमिया का तात्कालिक उपचार:15-15 नियम एक महत्वपूर्ण उपाय है। 15 ग्राम तेज़ी से असर करने वाले कार्बोहाइड्रेट—जैसे ग्लूकोज़ टैबलेट, फल का रस, या कैंडी—को तुरंत खाने से शुगर का स्तर बढ़ जाता है। ग्लूकोज़ लेवल को फिर से जांचने से पहले 15 मिन ट का इंतजार करना यह सुनिश्चित करता है कि पहली बार की गई कार्रवाई पर्याप्त थी। अगर लेवल फिर भी कम है, तो प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक कि स्तर स्थिर न हो जाए।
  • गंभीर हाइपोग्लाइसीमिया: गंभीर मामलों में, जब मौखिक दवाइयाँ नहीं ली जा सकतीं, तो ग्लूकागन इंजेक्शन दिया जाता है, जो तुरंत शुगर का स्तर बढ़ाता है। अगर व्यक्ति प्रतिक्रिया नहीं देता है, तो आपातकालीन देखभाल,जैसे अंतः शिरा डेक्सट्रोज़ (intravenous dextrose) की जरूरत हो सकती है। जल्दी इलाज करना बहुत ज़रूरी है ताकि मस्तिष्क को स्थायी नुकसान या मौत से बचाया जा सके।
  • लंबी अवधि का प्रबंधन: बार-बार हाइपोग्लाइसीमिया से बचने के लिए इसके कारणों को ठीक करना होता है। डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए, इसमें अक्सर इंसुलिन की खुराक को सही करना या भोजन और दवाओं के समय को बदलना शामिल है। सही पोषण, जिसमें छोटे-छोटे भोजन जो जटिल कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन से भरपूर हों, शुगर के स्तर को स्थिर बनाए रखने में मदद करते हैं। नियमित ब्लड शुगर की जांच और मरीज को सही जानकारी देने से वे जल्दी लक्षण पहचान सकते हैं और सावधानी बरत सकते हैं।

6. रोकथाम

बार-बार हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा होने वाले लोगों के लिए सही तरीके से रोकथाम करना बहुत ज़रूरी है।

  • नियमित भोजन समय: समय-समय पर खाने से शुगर का स्तर स्थिर रहता है और भोजन के बीच में शुगर कम होने का खतरा कम होता है।
  • संतुलित आहार: जटिल कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, और स्वस्थ वसा को शामिल करने से ऊर्जा बनी रहती है। बहुत ज्यादा शुगर से बचना भी जरूरी है, क्योंकि यह हाइपोग्लाइसीमिया का कारण बन सकता है।
  • खाना स्‍क‍िप करने की आदत से बचें: नियमित रूप से खाना, खासकर जिन लोगों को शुगर कम करने की दवाइयाँ दी जाती हैं, बहुत जरूरी है। खाना छोड़ने से शुगर का संतुलन बिगड़ जाता है और हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा बढ़ जाता है।
  • सही दवा की खुराक और समय: नियमित निगरानी तुरंत जानकारी देती है, जिससे जल्दी प्रतिक्रिया संभव होती है। निरंतर ग्लूकोज़ मॉनिटर (CGMs) विशेष रूप से उन लोगों के लिए सहायक हैं जिनके ब्लड शुगर का स्तर अनियमित होता हैं,क्योंकि ये तुरंत जानकारी और अलर्ट देते हैं।
  • नियमित ब्लड शुगर  की निगरानी: नियमित रूप से निगरानी करने से ताज़ा जानकारी मिलती है, जिससे समय पर सही कदम उठाया जा सकता है। जिन लोगों की ब्लड शुगर अचानक बदलती है, उनके लिए लगातार ग्लूकोज़ मॉनिटर (CGM) मददगार जानकारी और चेतावनियाँ देते हैं।

 

हाइपोग्लाइसीमिया का सही तरीके से प्रबंधन और लक्षणों के प्रति जागरूक रहना जरूरी है। इसे जल्दी पहचानने और तुरंत इलाज करने से तुरंत होने वाले खतरों को रोका जा सकता है और लंबे समय तक स्वास्थ्य और स्थिरता बनी रहती है।

 

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी सामान्य जानकारी है और हाइपोग्लाइसीमिया और इसके प्रबंधन के लिए आपके डॉक्टर से व्यक्तिगत सलाह का विकल्प नहीं है। हाइपोग्लाइसीमिया को ठीक से प्रबंधित करने के लिए एक खास योजना बनाना जरूरी है, जिसे आपके डॉक्टर के साथ मिलकर तैयार करना चाहिए। रक्त शर्करा की निगरानी और दवा में बदलाव के लिए नियमित रूप से अपने डॉक्टर से मिलना महत्वपूर्ण है ताकि आपका स्वास्थ्य ठीक रहे।

Image by xb100 on Freepik

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